जिंदगी की बाँह को मैं
~~~~~~~🌹 *गीत* 🌹~~~~~~
जिंदगी की बाँह को मैं थाम कर चलता रहा हूँ
मृत्यु के आँचल में तुम क्यों, मुँह छिपा कर चल दिये।
प्रार्थना के स्वर अधूरे, आज मेरे हो गये
राह को हम फूल माँगे, लोग काँटे बो गये.
दीप मैंने भी जलाया, अब उजाला आयगा
क्या पता था यह अंधेरा, उम्र भर तड़फायगा।
दूर कुछ तो साथ चलते, बीच रस्ते छल दिये
मृत्यु के आँचल में तुम क्यों, - - - - - - - - - - -
इस जनम के बाद भी क्या, राह में मिल पाएँगे
ये चमन के फूल सारे, फिर से क्या खिल पाएँगे
तितलियों की ही तरह रिश्ते, डोर नाजुक हो गये
लौट आओ तुम प्रिये किस, राह में तुम खो गये।
इस मधुर संबंध में क्यों कर उदासी मल दिये
मृत्यु के आँचल में तुम क्यों, - - - - - - - - - -
🙏 *सुरेश पैगवार* 🙏
जाँजगीर
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