धधकता छाती मोर छत्तीसगढ़ी गीत


~~~~~~🌹 *रोला छंद*  🌹~~~~~

धधकत छाती मोर,   अरे तन हा गुँगुवाथे।
मिले ओर ना छोर, जीव हा डबकत जाथे।।
कँदवा खागे गोड़,  कमा के कतका लावौं।
तन म अमागे रोग, कहाँ ले ओखद पावौं।

अरजी हावय मोर,   गोठ ला सुनलव भाई।
सरग चढ़त हे भाव,   रोक लव दाम दवाई।
तपथे जइसे जेठ,   घाम जी अबड़ दुखाथे।
कीमत सुनके आज, हमर तो मुहूँ सुखाथे।।

सबके खाली हाथ,करत हम महिनत कतको।
आय पसीना माथ,भले छइहाँ हे जतको।।
रोटी पानी खोज,   गुजर जाथे जिनगानी।
महिनत करथन रोज,जानलव इही कहानी।।

हन ठन ठन गोपाल, भूख मा तन अँइलागे।
गुखरू होगे पाँव,    देखलव मन मइलागे।।
नँगा नँगा अधिकार, खात हें नँगत कसाई।
देवँय कोन धियान,  बढ़य ना हमर कमाई।।

होबो जभे  सुजान, तभे किस्मत हा भाही।
भूख गरीबी छोड़,  हमर घर ले जी जाही।।
सच्चा साथी ज्ञान,   छोड़ कभ्भू नइ जावै।
पढ़ लिख होय सुजान,भाग ला अपन बनावै।।

सजही जिनगी तोर,   ज्ञान अक्षर ला पाके।
छटपट छँइहा छोड़, गुजर जाबे पछता के।।
भारी लूट खसोट,  जगत मा अवगुन चारी।
शिक्षा मारय चोट,     तभे ये जाय बिमारी।।

                                                    
                   🙏  *सुरेश पैगवार*  🙏          
                              जाँजगीर

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