अंगारों पर चलता हूँ मैं



---------------क्रान्ति वीर ----------
                 (कविता)

अंगारों पर चलता हूँ मैं 
शोलों-सा मैं   दहता हूँ,
हिन्द देश का मैं सपूत हूँ
मन दर्पण-सा रखता हूँ।

मेरे सीने में ज्वाला है 
मेरी  बाहों में    शोले,
इस धरती पर मर मिट जाऊँ
मन मेरा बम-बम  बोले।

ऐसा  समर   मचाऊँगा मैं
दुश्मन भी थर-थर काँपे,
इस सीमा से उस सीमा तक 
कभी नहीं फिर वो  झांके।

चट्टानों सा लिए हौसला
जब आगे मैं   बढ़ता हूँ,
नए जोश से नयी दृष्टि से
नयी राह मैं   गढ़ता हूँ।

मेरी आँखों में झाँको तुम 
क्रोधित मेरा तन देखो,
दहक रहा अंगारों जैसा
कितनी भरी अगन देखो।

आग लगा दूँगा  मैं दुश्मन
के सब दुष्ट इरादों को,
धूल चटा  दूँगा  मैं  उसके
आतंकी    बटमारों को।

भारत की रक्षा की खातिर 
मैं कुर्बानी दे   दूँगा,
चक्रव्यूह को दुश्मन के मैं
अभिमन्यू  -सा   भेदूँगा

मैं अब कभी नहीं बिखरूँगा 
और नहीं  मिट  पाऊँगा,
चिंगारी हूँ, दबा हुआ हूँ 
शोला  बनकर आऊँगा।

आज तिरंगे की खातिर मैं
अपना खून बहा दूँगा।
चंदन -सी मिट्टी से मैं भी
मर कर तिलक लगा लूँगा।

                        *सुरेश पैग्वार* 
                            अध्यक्ष 
                      राष्ट्रीय कवि संगम
                   जिला- जांजगीर चांपा
                    छत्तीसगढ़  (भारत)
                      पिन- 495 668 
                   मो. नंबर 98279 64107

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