कैसे कोई गीत लिखूँ
~~~~~~🌹 *गीत* 🌹~~~~~~
कैसे कोई गीत लिखूँ जो, सबके मन को भाए
तेरा मन अकुलाये साथी, मेरा मन अकुलाए।।
दवा बहुत है दुआ बहुत है, कोई काम न आए
कैसे लेखूँ कोई कविता, बिंब मुझे भरमाए।
थर -थर -थर -थर काँपे तन-मन, घूमें धरती गोल
गर्व करूँ कैसे इस तन पर, है मिट्टी के मोल।
विश्व शांति की राह चला हूँ, पर मन क्यों घबराए
किन शब्दों को साथ रखूँ जो शुभ-शुभ अर्थ बताए
कैसे कोई- - -
जिसको देखो खुद में गुम है, साँझ सकारे भोर
बाँध रही उन्मुक्त हवाएँ, औ पंछी का शोर
पर अपने ही आँगन में भी, सूने- सूने बोल
राज पाठ के सभी खिलौने, बजते जैसे ढोल।
सोया -सोया सकल जहाँ है, मन दुख में दुबलाए
आज सभी का मन व्याकुल है दुखड़ा कौन सुनाए।।
कैसे कोई - - -
जाँजगीर
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